ज्योतिष मानने का नही, शोध का विषय...

विज्ञान ने पदार्थ में परिवर्तन की दर का सम्बन्ध अब ग्रहों नक्षत्रों की पारस्परिक दूरी से जोड़ दिया है। कोई पदार्थ किसी विशाल पिंड के करीब होता है तो उसमें परिवर्तन की दर धीमी हो जाती है और यही पदार्थ जब विशाल पिंड से दूर चला जाता है तो इसमें परिवर्तन की दर बढ जाती है। ग्रह नक्षत्रों की पारस्परिक सापेक्षिक दूरी परिवर्तन शील है। हमारे सोर मण्डल में भी ग्रहों, उपग्रहों की सापेक्ष दूरी गणितीय नियमों से तालबद्ध ढ़ंग से बदलती रहती है। तो अन्य ग्रहों सहित पृथ्वी पर पदार्थ में परिवर्तन की दर भी समय समय पर बदलती रहती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ सिद्धाँत शिरोमणी में इस परिवर्तन की प्रकृति का बारिकी से अध्ययन किया गया है। कालांतर में इसे मनुष्य के जीवन में आने वाले तरह तरह के परिवर्तनों से भी जुड़ा हुआ पाया गया। क्यों कि मनुष्य की रासायनिक संरचना का मनुष्य के भाव, व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है। जब ग्रहों की सापेक्षिक दूरियों में परिवर्तन होता है तो निश्चित ही मनुष्य के रासायनिक संघटन में भी अंतर आयेगा। जो भाव और व्यवहार को भी प्रभावित करेगा। व्यवहार और भाव परिवर्तन से मनुष्य की उपलब्धियाँ भी प्रभावित होंगी। ज्योतिष में दशा, अंतर दशा, प्रत्यंतर दशा समय के साथ बदलने वाले पदार्थ में परिवर्तन का ही अध्ययन है। जिसका उपलब्धियों के रूप में आकलन किया जाता है।

प्रारम्भिक ज्योतिष ...