सनातन शिक्षा प्रणाली का आधुनिक रूपांतरण क्या हो सकता है?

🕉️🕉️ 🙏🙏 एक उदाहरण से समझते हैं: 👉 प्रत्येक विश्वविद्यालय MBA की डिग्री किसी बच्चे को तभी प्रदान करता है जब वह अपनी क्षमता से 10 लाख रुपए की आमदनी कर ले। 👉 इस लक्ष्य को पाने के लिए उसके पास सोशल स्किल और सर्वाइवल स्किल होने चाहिए। 👉 अगर किसी बच्चे में सोशल स्किल और सर्वाइवल स्किल नहीं है तो टेक्नोलॉजी का डेवलपमेंट और सैद्धांतिक ज्ञान व्यर्थ है। 👉 एमबीए की डिग्री पाने के लिए उसे अब अपने आसपास युवा वर्ग में पहचान करनी होगी कि कौन व्यक्ति किस प्रकार की सेवा दे सकता है अथवा क्या उत्पादन कर सकता है जिसका समाज में कोई मूल्य हो। 👉 दूसरी तरफ उसे समाज की ऐसी समस्याओं को पहचानना होगा जिन समस्याओं के समाधान उसके पास अथवा उसकी युवा टीम के पास उपलब्ध है। उसे समाज की ऐसी आवश्यकताओं को भी पहचानना होगा जिनकी पूर्ति वह किसी उत्पाद से अथवा सेवा से वह स्वयं कर सके या अपनी टीम से करवा सके । 👉 डिग्री पाना उसके लिए जीवन की अनिवार्य प्यास है तो उसे प्रैक्टिकल शिक्षा के रूप में सेल्फ असेसमेंट, म्यूचुअल असेसमेंट, सोशल असेसमेंट से गुजरना होगा। 👉माता पिता को अपने बच्चे के विकास के लिए मूल्यांकन का यह ढंग अपनाना ही होगा। 👉 प्राचीन समय में शिक्षा प्राप्त करके विश्वविद्यालय से निकलकर एक ब्रह्मचारी राजा महाराजा के पास जाकर कहता है कि मुझे अपने गुरु को 100000 स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा देनी है। ऐसे समर्थ ब्रह्मचारी को राजा परीक्षा लेकर जांचता है कि क्या वह इस योग्य है कि अपने गुरु को 100000 स्वर्ण मुद्राएं दे सके 👉 भगवान श्री कृष्ण राज सूययज्ञ में पत्तल उठाने का काम करते हैं। कृष्ण जैसा विराट व्यक्तित्व वाला व्यक्ति जिसे पूर्णअवतार की संज्ञा दी जाती है पत्तल उठना है तो इसका अर्थ समझने की आवश्यकता है। 👉 रिसर्च एंड डेवलपमेंट में लगे हुए बच्चों को समझना चाहिए कि शारीरिक श्रम मानसिक परिश्रम के साथ-साथ अनिवार्य है। सर्वाइवल स्किल के बिना और सोशल स्किल के बिना सैद्धांतिक और तकनिकी विकास व्यर्थ है। 🙏🙏 स्वामी ध्यान दीवाना 9929515246 🕉️🕉️

इस बसंत पंचमी से कुछ ख़ास सोचा जाये जो आपकी जिन्दगी बदल दे...

अवतार, तीर्थंकर और देवी देवता आपकी ही गोद में खेले हैं। आदि शक्ति आदि पुरुष स्वरूप का स्मरण करें। आप पाप की संतान नही जिसको कयामत के दिन जजमेंट सुनाया जाएगा। आत्मदीपो भव सूत्र सनातन संस्कृति ने दिया है। पितृकुल के दिये हुए अपने दिव्य शरीर को आज भी याद है कि वाल्मीकि, राम, कृष्ण, सीता, राधा, हनुमान आदि अंशावतार या पूर्ण अवतार आपने ही जन्मे हैं। कभी आप कंस की जेल में प्रताड़ित देवकी वासुदेव रहे तो कभी राजा दशरथ और कौशल्या हुए, वाल्मीकि जैसे ऋषि को साधारण जन होकर जन्म दिया तो प्रतापी राजा होकर महावीर जैसे तीर्थंकर पैदा किये। मंदिर, आश्रम, तीर्थ जाएं तो अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इन स्थानों को ऊर्जावान करें। उपनिषद का यह संदेश जन साधारण को अपने आचरण से समझाएं। एक साधारण प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के माता पिता अगर राष्ट्रपति भवन जाते हैं या प्रधानमंत्री आवास जाते हैं तो अपनी संतान पर गर्व करते हैं कि उनका पुत्र आज जगतप्रसिद्ध है। आप मंदिर जाएं तो गर्व करें कि आप ही की संतान आज जगत वंदनीय है। दीन दुःखी जो आज मंदिर आये हैं उनको वह परमसत्ता निराश नही करेगी जिसको कभी मैंने भी जन्म दिया था। अपने आचरण के साबित करें कि आप अपनी संतान के यश गौरव को और बढ़ाएंगे उसके काम में हाथ बंटाएंगे। ईश्वरीय सत्ता के काम में हाथ बंटाने का एक ही अर्थ है कि जो हमारे आस पास है उनकी गरिमा का स्मरण कराएं। उनकी आत्मिक शक्ति के विकास में सहयोगी हो भौतिक जीवन की समृद्धि में परस्पर सहयोग करें। 🙏🏻🙏🏻 स्वामी ध्यान दीवाना पितृकुल 9929515246

निजी शिक्षण संस्थाए ।।ज्ञान का उन्नत मंदिर या दुकाने।।।🌷🌷

 

🌷🌷आज अपने बहुमूल्य विचार दीजिये ।इस पर

🙏शिक्षण संस्थाएं सरकारी हो या निजी ज्ञान से इनका कोई वास्ता नही रहा।
🙏पूरा व्यवस्था तंत्र महज सूचनाओं का वाहक बन गया है।
🙏निरर्थक और निरुपयोगी सूचनाएं।
🙏एक बात सोचिए... सूचना कीमती है या सूचना का विश्लेषण करने की योग्यता?
🙏निश्चित ही सूचना का विश्लेषण करने की योग्यता कीमती है।
🙏अब जानिए कि देश के नागरिकों को सूचना का अधिकार बिल भी पिछले दशक में पास हुआ है। अर्थात आजादी के बाद अब तक देश के नागरिकों को सूचना का अधिकार भी नही था।
🙏तो सूचना के विश्लेषण का अधिकार अर्थात ज्ञान का अधिकार आपको शिक्षण संस्थानों में मिल रहा है ये तो सोचना भी मूर्खता है।
🙏सूचना का अधिकार भी केवल कागजों में मिला है। सूचना के अधिकार की वास्तविक मांग करने वाले 100s कार्यकर्ता देश में अब तक जान खो चुके हैं।
🙏आपको इंटरनेट के नाम पर सूचनाओं का विराट तंत्र दिखाई दे रहा है इसे देख कर भ्रमित न हों।
🙏ये तो वैसे ही है जैसे खारे पानी के समुद्र में आप नाव में सफर कर रहे है। नाव का मालिक पीने के पानी पर कब्जा किये बैठा है।
🙏नाव के मालिक की तरह से दुनिया के चुने हुए लोगों ने पीने योग्य पानी अर्थात् उपयोगी सूचना पर अधिकार कर रखा है। उन सूचनाओं की मांग करने वाले यातो उपेक्षित है या खत्म कर दिए जाते है।
🙏अब विचारिये क्या जनसाधारण को ज्ञान का अधिकार है?
🙏शिक्षण संस्थानों में जो शिक्षा के नाम पर ड्रामा चल रहा है वह इस ड्रामे के वित्त पोषकों एजेंडा पूरा कर रहा है।
🙏आप सोचिये जो वित्त पोषक तंत्र दुनिया के किसी एक कारखाने में बना मोबाइल बाजार के हर रिटेल स्टोर पर 10 दिन में पहुँचा देता है क्या उसकी नीयत ठीक हो तो वह दुनिया की 80% आबादी को सही शिक्षा नही दे सकती?
🙏इस दुनिया में शिक्षा और स्वास्थ्य पर जितना श्रम और कोशल खर्च हो रहा है उससे हजारों गुना कौशल युद्ध उद्योग पर खर्च हो रहा है।
🙏 जिनकी रोटी और शिक्षा की मांग है वे पिघलते लोहे और बारूद के शिकार हो रहे हैं हर क्षण इस धरती पर।
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कर्म प्रधान है अथवा पितरों का आशीर्वाद?

 प्रश्न :  मनुष्य की आवश्यकताएं महत्वाकांक्षा  और उसके सपने कर्म किए बिना पूरे नहीं होते।  पितृलोक एक अंधविश्वास से अधिक कुछ भी नहीं है आप यह व्यर्थ की चर्चा क्यों प्रसारित कर रहे हैं?

उत्तर : जब कहीं गढ़ा खोदा जाता है तो निकली हुई मिट्टी से पहाड़ अपने आप खड़े हो जाते हैं। और पहाड़ों के टूटने से ही गढ़े उभरते हैं। चेतना के भी दो भंवर बने हुए हैं। जन्म और मृत्यु के वोर्टेक्स में जिस तरह यह आयाम अनुभव में आता है उसी तरह मरणोत्तर आयाम भी अनुभव में आता है। आपको जागते हुए तो स्वप्न याद रहते हैं कि आपने नींद में कोई स्वप्न देखा था। लेकिन नींद में कभी यह याद नही रहता कि आपका जागृत अस्तित्व है। जीवन और मृत्यु के मामले में यह नियम उल्टा है... मृत्यु के बाद तो जीवन काल का बोध रहता है कि जीवन कैसे बीता है परंतु जन्म के साथ ही यह बोध खो जाता है कि पारजगत में क्या था। जिस तरह जागरण और स्वप्न अन्तरसम्बन्धित है दिन के घटनाक्रम का स्वप्न पर असर होता है और सपनों की दुनिया भी हमारे जाग्रत निर्णय पर असर डालती है उसी प्रकार जीवन और मृत्यु भी अन्तरसम्बन्धित है। आपकी आवश्यकता, महत्वाकांक्षा और सपने एक ही जन्म में पूरे नही होते। जिस तरह रात को सोते समय अधूरे काम छोड़ कर विश्राम में चले जाते हो उसी प्रकार अधूरी जिंदगी छोड़ कर जीव मृत्यु रूपी विश्राम में चला जाता है। परंतु जिस तरह नींद आपकी यात्रा/अस्तित्व का अंत नही है उसी तरह मृत्यु भी आपके अस्तित्व/यात्रा का अंत नही है। सत्य के साक्षात्कार के लिए आवश्यकता, महत्वाकांक्षा और सपनों का शांत होना आवश्यक है। नींद और मृत्यु में चैतन्य प्रवेश से ही पितृलोक का बोध हो सकता है। इसका अर्थ यह नही कि बोध न होने तक हम पर पितृलोक का कोई असर नही है। अंधविश्वास कोई बुरी बात भी नही है। जब तक आपको लाभ होता है तब तक अंधविश्वास करते रहें। किसान का विश्वास है कि धरती चपटी है इस विश्वास के सहारे वह खेती करता है। यूक्लिड ज्योमेट्री के सहारे हमने इतना यांत्रिक विकास किया है परंतु अब नॉन यूक्लिड ज्योमेट्री या क्वांटम फिजिक्स के सहारे यांत्रिक मजबूरी से मुक्त हो रहे हैं। याद करिये वे दिन जब मोबाइल फोन नही थे तो इसकी मुफ्त में उपलब्ध सुविधाओं के लिए कितनी यांत्रिक रचनाएं खरीदनी पड़ती?

सुरेश 9929515246

Education?

 एक लोचशील और ऐसी शिक्षा प्रणाली की जरूरत है जो व्यक्ति की निहित क्षमताओंं को उभारने में सहयोगी हो। इससे युवक न केवल अपनी क्षमताओं का समाज में योगदान करें बल्कि सहयोग भी कर सके। निजि और टीम के रूप में उसकी उपयोगिता पर विचार करते हुए ही मुल्यांकन प्रणाली का विकास करना होगा। औद्योगिक युग में युवक को पहले से ज्ञात होता था कि वह किस प्रकार का स्किल सीख कर किस इंडस्ट्री में समायोजित हो जाएगा।

स्किल डवलपमेण्ट के नाम पर सरकार जो कर रही है क्या उसमें बदली परिस्थिति के अनुसार नये स्किल सीखने सिखाने के रास्तों पर विचार किया जाएगा?

समाज में तीव्रगति से निरंतर होने वाले बदलावों के लिए जो स्किल चाहिए क्या वे हमारे नीति निर्माताओं के लिए विचारणीय विषय है?

बदलाव ही वह लक्ष्य है जिसके लिए युवा को स्किल देना होगा। अर्थव्यवस्था में, समाज में निरंतर बदलाव हो रहा है। इस निरंतर बदलाव के अनुकूल जो स्किल सेट चाहिए वह आउट ऑफ डेट नही हो सकता।

रचनात्मकता, निरंतर स्वरूप बदलती समस्याओं का समाधान कर सकने की क्षमता का विकास, सहयोग पाने और देने की तत्परता, सामुहिक हितों के प्रति सजगता, अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भ, सांस्कृतिक समझ, भावात्मक लचीलापन, सीखते रहने की ललक, उद्यमिता ये कुछ स्किल सेट है जिनके बिना युवक अधूरा ही रहेगा। सरकार क्या इन सब के लिए कुछ कर रही है?

सीखने और समयानुकूल तत्काल बदलने की भावना का विकास व्यापक मीडिया सहयोग के बिना सम्भव नही है।

क्या हमारे पास वह मैन पावर है जो इन जरूरतों को पूरा कर सके? क्या प्रशासन इतना लचीला है कि वह प्रमाणपत्रों की दिखाई योग्यता से बाहर जाकर भी उपयुक्त मानव संसाधन को इस कार्य के लिए सहयोगी बना सके?